राज्य स्थापना दिवस 2020 : अब अपनी उम्मीदों को पंख लगे देखना चाहता है उत्तराखंड

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नौ नवंबर, 2000 को पर्वतीय प्रदेश के रूप में उत्तराखंड ने अलग सफर शुरू किया। उम्मीदों से भरा सफर। उम्मीद से भरा भी इसलिए कि राज्य ने लंबे संघर्ष, कई उतार चढ़ाव और कई शहादतों के बाद अलग राज्य का मुकाम हासिल किया था। जाहिर है खुशी मनाना बनता ही था।उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 : प्रधानमंत्री मोदी ने दी बधाई, कहा- विकास की नई ऊंचाइयों को छूता रहे प्रदेशराज्य स्थापना दिवस समारोह की परंपरा की नींव पहले दिन ही पड़ी और तब से जारी है। शुरूआत में राज्य ने अपने सामने की बड़ी चुनौतियों पर ध्यान दिया। युवाओं को काम, पहाड़ और मैदान का विकास, आत्मनिर्भरता आदि। तब से यह सफर जारी है लेकिन अब स्थिति बदली है। अब प्रदेश के लोग उम्मीदों को पंख मिलते देखना चाहते हैं। बीस साल के उत्तराखंड के सामने अब चुनौती और भी बढ़ गई है…बीस साल का उत्तराखंड अब अपने सपनों और उम्मीदों को पंख लगे देखना चाहता है। अब वह उड़ान की तैयारी में भी है। ऋषिकेेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन, मेट्रो, स्मार्ट सिटी, ऑल वेदर रोड, पहाड़ की राजधानी उसके सपनों में शामिल है। लोग पूछ रहे हैं कितना समय और कब तक। यह इससे भी साबित होता है कि हर मंच पर सरकार को जवाब देना पड़ रहा है।वर्ष 2000 में राज्य के सामने कई लक्ष्य थे। पहाड़ को पनिशमेंट पोस्टिंग की धारणा से बाहर निकालना, युवाओं को रोजगार देना, उद्योगों का विकास, गरीबी को कम करना, लोगों को नागरिक सुविधाएं देना। इनमें से 2003 का औद्योगिक पैकेज मील का पत्थर साबित हुआ। एक मोर्चे पर राज्य ने बेहतर काम किया, लेकिन अन्य कई मोर्चोँ पर काम करना बाकी रह गया। यह मोर्चे थे प्रदेश की 70 प्रतिशत आबादी को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में शामिल करना व समावेशी विकास, दूरदराज तक आसान पहुंच, पर्यटन और हवाई सेवाओं का विस्तार, प्रदेश की आध्यात्मिक चेतना का विकास करना।
 
अब इन सवालों का जवाब खोजने के लिए प्रदेश आगे बढ़ रहा है। पिछले कई सालों में रेल नेटवर्क में एक किलोमीटर का विस्तार नहीं हुआ। अब कर्णप्रयाग रेलवे लाइन 2025 तक पूरी होने की संभावना है। देहरादून स्मार्ट सिटी बन रही है। मेट्रों की योजना पर काम किया जा रहा है। ऑल वेदर रोड बन रही है। सरकार ग्रोथ सेंटर बना रही है। ग्रीष्मकालीन राजधानी पर काम किया जा रहा है। 

वैसे तो राज्य में राजनीतिक स्थिरता बनी रही है। इसका अपवाद है तो 2016 का राष्ट्रपति शासन, लेकिन अब यह चुनौती बढ़ी है। प्रदेश में युवा अब सिर्फ कोरे वादों में उलझा नहीं रहना चाहता। उसे परिणाम भी चाहिए। 2020 में आप की उपस्थिति, कांग्रेस का सिमटना, भाजपा का प्रसार सब इसी का परिणाम भी माना जा रहा है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती, पर्यावरण चेतना भी बढ़ीपिछले कुछ समय में पर्यावरण मामलों को लेकर कोर्ट का दखल बढ़ने व कई मामलों को चुनौती देने से जाहिर हो रहा है कि प्रदेश अपनी थाती के प्रति संजीदा है। हिमालयन कॉनक्लेव से लेकर जीडीपी की मुहिम को फिर से शुरू करना इसका संकेत भी है। तेज विकास दर, अधिक प्रति व्यक्ति आयराज्य ने वर्ष 2000 में 14.5 हजार करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था से 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की अर्थव्यवस्था तक छलांग लगाई। शून्य से शुरू होकर उद्योगों का 55 हजार करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा किया। मात्र 50 हजार युवाओं को रोजगार देने की क्षमता वाला राज्य इन 20 सालों में तीन लाख से अधिक युवाओं को सिर्फ उद्योगों में रोजगार देने वाला राज्य बना। इसी तरह प्रति व्यक्ति आय में भी इजाफा हुआ।कई चुनौतियों का सामना भी कियाबार-बार नेतृत्व परिवर्तन के बीच, राष्ट्रपति शासन का सामना भी किया। पलायन का दंश पहले जितना था, उससे कहीं अधिक पहुंच गया। 2013 की केदारनाथ आपदा का दंश सहा और उससे उबरा। 2020 में अब कोरोना की चुनौती का सामना राज्य कर रहा है। अभी तक राज्य का प्रदर्शन बहुत खराब भी नहीं है। अब अगर नई लहर सामने आती है तो राज्य को देखना होगा कि वह किस तरह से इसका सामना करेगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मुख्यधारा की अर्थ व्यवस्था बनाने की भी चुनौती प्रदेश में कोरोना काल में मिले पाठ का सबब ही यह है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रदेश की मुख्यधारा की अर्थ व्यवस्था बनाया जाए। पलायन आयोग के अध्यक्ष डा. एसस नेेगी के मुताबिक प्रदेश में 70 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र है। यह क्षेत्र उभरेगा तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था कोकिसी भी तरह की महामारी कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएगी।

नौ नवंबर, 2000 को पर्वतीय प्रदेश के रूप में उत्तराखंड ने अलग सफर शुरू किया। उम्मीदों से भरा सफर। उम्मीद से भरा भी इसलिए कि राज्य ने लंबे संघर्ष, कई उतार चढ़ाव और कई शहादतों के बाद अलग राज्य का मुकाम हासिल किया था। जाहिर है खुशी मनाना बनता ही था।

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 : प्रधानमंत्री मोदी ने दी बधाई, कहा- विकास की नई ऊंचाइयों को छूता रहे प्रदेश

राज्य स्थापना दिवस समारोह की परंपरा की नींव पहले दिन ही पड़ी और तब से जारी है। शुरूआत में राज्य ने अपने सामने की बड़ी चुनौतियों पर ध्यान दिया। युवाओं को काम, पहाड़ और मैदान का विकास, आत्मनिर्भरता आदि। तब से यह सफर जारी है लेकिन अब स्थिति बदली है। अब प्रदेश के लोग उम्मीदों को पंख मिलते देखना चाहते हैं। बीस साल के उत्तराखंड के सामने अब चुनौती और भी बढ़ गई है…

बीस साल का उत्तराखंड अब अपने सपनों और उम्मीदों को पंख लगे देखना चाहता है। अब वह उड़ान की तैयारी में भी है। ऋषिकेेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन, मेट्रो, स्मार्ट सिटी, ऑल वेदर रोड, पहाड़ की राजधानी उसके सपनों में शामिल है। लोग पूछ रहे हैं कितना समय और कब तक। यह इससे भी साबित होता है कि हर मंच पर सरकार को जवाब देना पड़ रहा है।वर्ष 2000 में राज्य के सामने कई लक्ष्य थे। पहाड़ को पनिशमेंट पोस्टिंग की धारणा से बाहर निकालना, युवाओं को रोजगार देना, उद्योगों का विकास, गरीबी को कम करना, लोगों को नागरिक सुविधाएं देना। इनमें से 2003 का औद्योगिक पैकेज मील का पत्थर साबित हुआ। एक मोर्चे पर राज्य ने बेहतर काम किया, लेकिन अन्य कई मोर्चोँ पर काम करना बाकी रह गया। यह मोर्चे थे प्रदेश की 70 प्रतिशत आबादी को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में शामिल करना व समावेशी विकास, दूरदराज तक आसान पहुंच, पर्यटन और हवाई सेवाओं का विस्तार, प्रदेश की आध्यात्मिक चेतना का विकास करना।
 
अब इन सवालों का जवाब खोजने के लिए प्रदेश आगे बढ़ रहा है। पिछले कई सालों में रेल नेटवर्क में एक किलोमीटर का विस्तार नहीं हुआ। अब कर्णप्रयाग रेलवे लाइन 2025 तक पूरी होने की संभावना है। देहरादून स्मार्ट सिटी बन रही है। मेट्रों की योजना पर काम किया जा रहा है। ऑल वेदर रोड बन रही है। सरकार ग्रोथ सेंटर बना रही है। ग्रीष्मकालीन राजधानी पर काम किया जा रहा है। 

वादे पूरे नहीं किए तो राजनीतिक स्थिरता पर भी होगा संकट

वैसे तो राज्य में राजनीतिक स्थिरता बनी रही है। इसका अपवाद है तो 2016 का राष्ट्रपति शासन, लेकिन अब यह चुनौती बढ़ी है। प्रदेश में युवा अब सिर्फ कोरे वादों में उलझा नहीं रहना चाहता। उसे परिणाम भी चाहिए। 2020 में आप की उपस्थिति, कांग्रेस का सिमटना, भाजपा का प्रसार सब इसी का परिणाम भी माना जा रहा है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती, पर्यावरण चेतना भी बढ़ीपिछले कुछ समय में पर्यावरण मामलों को लेकर कोर्ट का दखल बढ़ने व कई मामलों को चुनौती देने से जाहिर हो रहा है कि प्रदेश अपनी थाती के प्रति संजीदा है। हिमालयन कॉनक्लेव से लेकर जीडीपी की मुहिम को फिर से शुरू करना इसका संकेत भी है। तेज विकास दर, अधिक प्रति व्यक्ति आयराज्य ने वर्ष 2000 में 14.5 हजार करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था से 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की अर्थव्यवस्था तक छलांग लगाई। शून्य से शुरू होकर उद्योगों का 55 हजार करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा किया। मात्र 50 हजार युवाओं को रोजगार देने की क्षमता वाला राज्य इन 20 सालों में तीन लाख से अधिक युवाओं को सिर्फ उद्योगों में रोजगार देने वाला राज्य बना। इसी तरह प्रति व्यक्ति आय में भी इजाफा हुआ।कई चुनौतियों का सामना भी कियाबार-बार नेतृत्व परिवर्तन के बीच, राष्ट्रपति शासन का सामना भी किया। पलायन का दंश पहले जितना था, उससे कहीं अधिक पहुंच गया। 2013 की केदारनाथ आपदा का दंश सहा और उससे उबरा। 2020 में अब कोरोना की चुनौती का सामना राज्य कर रहा है। अभी तक राज्य का प्रदर्शन बहुत खराब भी नहीं है। अब अगर नई लहर सामने आती है तो राज्य को देखना होगा कि वह किस तरह से इसका सामना करेगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मुख्यधारा की अर्थ व्यवस्था बनाने की भी चुनौती प्रदेश में कोरोना काल में मिले पाठ का सबब ही यह है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रदेश की मुख्यधारा की अर्थ व्यवस्था बनाया जाए। पलायन आयोग के अध्यक्ष डा. एसस नेेगी के मुताबिक प्रदेश में 70 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र है। यह क्षेत्र उभरेगा तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था कोकिसी भी तरह की महामारी कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएगी।

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