व्यापारों पर लगभग 65% कब्ज़ा हैं,
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- पँचरवाला..
जिन्हें तुम पँचरवाला कहते हो ना। कुल 5 लाख मस्जिदों, दो लाख मदरसों, लाखों कब्रिस्तानों, जगह जगह फैली पड़ी लाखों मजारों, दरगाहों, लाखों ईदगाहों, खेतों, बागों, 100 से ज़्यादा मुस्लिम विश्वविद्यालयों और वक्फ संपत्तियों के माध्यम से देश की कुल ज़मीन के 35% हिस्से पर कब्ज़ा कर चुका है
कौन सा ऐसा व्यवसाय है,जिस पर इन कथित ‘पँचरवालों’ का कब्ज़ा न हो गया हो, उन व्यापारों पर लगभग 65% कब्ज़ा हैं, जहाँ एक धेले का भी कोई टैक्स नहीं देना पड़ता। क्योंकि ये काम ही ऐसा पकड़ते हैं जिसमें टैक्स हो ही ना, या फिर ना के बराबर।
दिल्ली में सड़क के किनारे परांठे बनाने का काम भी इन्होंने हड़प लिया है ! मीट उद्योग जहाँ एक जानवर पर 500 % का फायदा है, इन्ही का 95 % कब्ज़ा है।
एक बैंक मैनेजर ने बताया कि सेविंग खातों में पड़े मोटी रकम के हिसाब से अधिकांश सेविंग खाते इसी समुदाय से हैं।
रियल स्टेट और ज़मीन दलाली जैसे समृद्ध धंधे में इस समुदाय का कब्ज़ा 40% से ऊपर है।
तस्करी और नशीला कारोबार, जिसमे लाखों ‘भाई लोग’ लगे हैं.. उसका तो ज़िक्र ही व्यर्थ है..
रोहिंग्या वगैरा छोड़ दें तो इस समुदाय से सम्बंधित भिखारियों की संख्या अब शून्य हो चली है..
सड़क पर भीख मांगने वाले अधिकांश बच्चे हिन्दू समुदाय से ही दिखाई देते है
यह पोस्ट लिखी इसलिए गई है कि यह मज़हब देश की संपदा के बड़े हिस्से पर काबिज होने के बाद भी ऊपरी दिखावे नकली वैभव प्रदर्शन और फिजूल-खर्ची से दूर है।
मौके पर खुद को गरीब दिखा कर देश के बचे खुचे संसाधनों पर भी तेज़ी से कब्ज़ा कर रहा है..
हम कंगाल, फटीचर, बेरोजगार और भूखे लोग देश के लगभग सारे संसाधनों पर कब्ज़ा कर चुके लोगों को ‘पँचरवाला’ कहकर खुश होते रहते हैं।
कभी विचार किया कि महज़ 15-20 हजार की पूंजी लगाकर हाइवे और शहरों की लाखों रु कीमत वाली सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करने वाला सामान्य ‘पँचरवाला’ एक सरकारी कर्मचारी के बराबर कमाता है..
पर रहता फटे हाल में। सोचते वाली बात है। कि बेवकूफ हम है या बनाये जा रहे है।
बात में दम लगे, तो ही आगे फॉरवर्ड करना।
वरना, …. हिन्दू सो तो वैसे भी