वन्य जीवों और जैव विविधता को भी खतरा पहुंच रहा है
![](https://janjeevankijhanki.com/wp-content/uploads/2021/11/IMG-20211102-WA0108-1024x682.jpg)
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पर्यावरण, जल, वन्य प्राणियों, वनस्पतियों और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का संदेश देते हुये कहा कि इनके संरक्षण से न केवल पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार होगा बल्कि लुप्तप्राय प्रजातियों और वनस्पतियों को भी पुनर्प्राप्त किया जा सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमें प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के साथ ही जैव विविधता के खतरे से बचने के लिए भूमि और जल को प्रदूषित होने से रोकना होगा क्योंकि हमारा ग्रह ( पृथ्वी ) वर्तमान समय में प्रदूषण की अनेक चुनौती का सामना कर रहा है जिससे वन्य जीवों और जैव विविधता को भी खतरा पहुंच रहा है। अगर जल, जमीन और वायु का प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा तो धरती से अनेक प्रजातियां और वन्य जीव विलुप्त हो सकते हैं इसलिये हमें प्रकृति अनुकूल जीवनचर्या और गतिविधियों को अपनाकर जलवायु परिवर्तन को रोकना होगा।
भारत दुनिया के सबसे अधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है परन्तु वर्तमान समय में वन्य जीवों और वनस्पतियों की लगभग 8000 से अधिक प्रजातियां लुप्तप्राय हैं और करीब 30,000 से अधिक विलुप्त होने के कगार पर हैं इसलिये प्रकृति अनुकूल जीवनशैली को अपनाना आवश्यक है।
प्रतिवर्ष 31 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय जेबरा दिवस मनाया जाता है जिसका उद्देश्य धारीदार स्तनपायी और इसकी लुप्तप्राय स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। बढ़ती जनसंख्या के कारण हमारी आवश्यकता भी बढ़ रही है जिसकी पूर्ति के लिए लगातार वन और प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग किया जा रहा है। प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों से वनों को काटा जा रहा है जिससे वन्य प्राणी मानव बस्तियों की ओर आने के लिए मजबूर है जिसके परिणाम स्वरूप मानव तथा वन्य जीवों के बीच संघर्ष में भी बढ़ोतरी हो रही है।
जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा, जल का अभाव तथा जैव विविधता से वन्य जीव अपने भोजन की तलाश में मानव बस्तियों की ओर आने लगे हैं। मानव पशु संघर्ष को रोकने के लिये दोनों को अपने अपने क्षेत्रों में सुरक्षित रखने पर ध्यान देना होगा और इसके लिये हमें जंगलों का अतिक्रमण न हो इस पर विशेष ध्यान देना होगा। साथ ही मानव तथा प्राणियों दोनों का सहअस्तित्व बना रहे इस पर चिंतन करना होगा।
प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से़ वनों और समुद्री व नदियों के जल की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। प्राकृतिक असंतुलन से ओजोन परत का घटना, समुद्र का जलस्तर बढ़ना, ग्लेशियर्स का पिघलना जैसे स्थितियाँ उत्पन्न हो रही है इसलिये वन, जल तथा जीवों का संरक्षण करना होगा क्योंकि यह मानवता के संरक्षण के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।